इतिहास और मील के पत्थर

1990-1999

  • नब्बे के दशक के आरम्भ में एनसीएल को गंभीर आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा । विदेशी मुद्रा की तुलना में रुपए की अत्यधिक मूल्यवृद्धि तथा सीएसआईआर से प्रयोगशालाओं को मिलने वाली वित्तीय सहायता में कमी के कारण एनसीएल की अनुसंधान गतिविधियॉं आगे चालू रखना एक कठिन चुनौती बन गई । भारत में आर्थिक सुधारों के कारण भारतीय रसायन उद्योग में भी कई परिवर्तन आए । उद्योग जगत ने वस्तुएँ आयात करने के बजाय विश्वस्तर पर प्रतियोगी उत्पादों के निर्माण पर ध्यान केन्द्रित किया ।
  • एनसीएल ने अभिनव अनुसंधान तथा बौद्धिक सम्पदा के निर्माण हेतु उच्चतम गुणता वाले वैज्ञानिक अनुसंधान पर ध्यान केन्द्रित किया । भारतीय उद्योग में व्यापारिक भागीदारी की दृष्टि से मन्द‍ और शिथिल प्रयासों को ध्यान में रखते हुए एनसीएल ने आक्रामक रूप से विश्वस्तरीय बहुराष्ट्रीय कम्पपनियों के साथ अनुसंधान एवं विकास हेतु भागीदारी शुरू की ।
  • एनसीएल ने नारा दिया - एकस्व (पेटेंट ) प्राप्ति ,प्रकाशन या अस्तित्त्वहीनता (पेटेंट,पब्लिश ऑर पेरिश) । एनसीएल ने शोधपत्र प्रकाशित करने से पूर्व उसका एकस्व (पेटेंट) प्राप्ती करने हेतु पहल की। यह एक ऐसी संस्कृति थी जो 1995 के बाद समूचे सीएसआईआर में व्याप्ती हो गई ।
 
us granted
  • एनसीएल ने अमरीका में कई एकस्व के आवेदन प्रस्तुत किए और उन्हें स्वीकृति भी प्राप्त हुई । इससे विश्व की बड़ी कम्पनियॉं एनसीएल की ओर आकर्षित हुई और उन्होंने एनसीएल के साथ अनुसंधान कार्य में भागीदारी के प्रस्ताव प्रस्तुत किए । यहीं से सीएसआईआर के एक नए युग का आरम्भ हुआ और ज्ञान प्रदाता (एक्पोसे सर्टर्स ऑफ नॉलेज) के रूप में उसकी पहचान बनी । इसके साथ ही भारत अनुसंधान एवं विकास हेतु विश्वपस्तर पर एक केन्द्र के रूप में उभरकर सामने आया और इसके परिणामस्वप भारत को ज्ञान (अनुसंधान) का भागीदार बनाने हेतु विश्व की बड़ी कम्पनियों में रुचि बढ़ने लगी।
 
ncl forays
  • एनसीएल ने पॉलिकॉर्बोनेट हेतु बहुसंघनन रसायनविज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश किया । प्रयोगशाला ने ठोस अवस्था बहुसंघनन के क्षेत्र में कई एकस्व दायर किए जिससे विश्व की सबसे बड़ी पॉलिकॉर्बोनेट उत्पादक कम्पनी जीई का ध्यान एनसीएल की ओर आकृष्ट हुआ । यहीं से एनसीएल एवं उद्योग जगत के बीच अनुसंधान – सहयोगी की शुरूआत हुई । सीएसआईआर और उद्योग जगत के मध्य 1993 से आरम्भ हुआ एवं निरन्तर रूप से आज तक चलने वाला यह सहयोग अपनी सबसे लम्बी अवधि के कारण एक रिकॉर्ड बन गया है । सार्वजनिक एवं निज़ी भागीदारी के मध्यक विकसित इस सहयोग ने नए प्रतिमान स्थापित किए और इसी के फलस्वरूप बेंगलुरू में जे. वेल्शा प्रौद्योगिकी केन्द्र की स्थापना की गई ।
 
  • प्रयोगशाला के संसाधनों को बढ़ाने एवं एनसीएल की कुछ पुरानी अवसंरचनाओं को आधुनिक बनाने हेतु धन उपलब्ध कराने के लिए एनसीएल ने विश्व बैंक से ऋण लेने की चुनौती स्वीकार की । प्रयोगशाला द्वारा व्यापारिक स्रोतों से प्राप्त आय से यह ऋण ब्याज सहित चुकाया जाना था । ऋण से प्राप्त धन बहुलक विज्ञान एवं अभियांत्रिकी, प्रक्रिया विकास में नई अनुसंधान क्षमताओं के निर्माण तथा उनके समुन्नतन और उत्प्रेरकों के समुन्नतन हेतु प्रयोग में लाया गया । एनसीएल ने औद्योगिक/अनुबन्ध अनुसंधान से प्राप्त आय से सन 2005 में समाप्त दस वर्ष की अवधि में विश्व बैंक का पूरा ऋण ब्याज सहित चुका दिया ।
1990-2000-1     
1990-2000-2
 

 

  • एनसीएल ने उत्प्रेरण के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास सम्बन्धी नेतृत्व की अपनी परम्परा को जारी रखा । टाइटैनोसिलिकेट उत्प्रेरक, (टीएस-1) विकसित करने वाली एनसीएल पूरे विश्व में दूसरी संस्था बनी । अब तक इस पर एनिकेम, इटली का एकाधिकार था । इस उत्प्रेरक के उत्पादन को प्रयोगशाला के उत्प्रेरक प्रायोगिक संयंत्र में किलोग्राम स्तर तक बढ़ाया गया और कई वर्षों तक विश्व की कम्पनियों को इसकी आपूर्ति की जाती रही ।
  • एनसीएल ने विश्व की कई बड़ी कम्प्नियों के साथ ऐतिहासिक अनुसंधान करार पर हस्ताक्षर करते हुए आक्रामक रूप से अनुबन्ध अनुसंधान क्षेत्र में प्रवेश किया । इन कम्पनियों में जीई, डुपोंट , डो, बास्फर, ल्योडन्डे ,लॉनक्सेस, सॉलवे, जे ऐण्ड जे, पी ऐण्ड जी, यूओपी, इनविस्टा., ईस्ट‍मन,अल्कोवा, नेस्टले, यूनिलीवर, हनीवेल आदि शामिल हैं । एनसीएल के वैज्ञानिकों ने प्रतियोगी अनुसंधान एवं विकास के कठोर यथार्थ को समझा और विश्व की बड़ी कम्पनियों से व्यवसयोंमुक्ख अनुसंधान एवं विकास के उत्कृष्ट व्यावहारिक ज्ञान का अनुभव प्राप्त किया । सरकार द्वारा सीएसआईआर को प्राप्त होने वाले धन में कटौती किए जाने के कारण एनसीएल को एक दशक से धन की कमी महसूस हो रही थी किन्तु अनुबन्ध अनुसंधान ने प्रयोगशाला को आवश्यक वित्तीय संसाधन भी उपलब्ध करा दिए ।
  • सार्वजनिक निधि से चलाए जाने वाले एनसीएल जैसे संगठन में निजी कम्पनियों से प्राप्त निधि के प्रबन्धन में एक अद्वितीय प्रयोग करते हुए एनसीएल अनुसंधान फाउण्डे्शन की स्थापना की गई। एनसीएल अनुसंधान फाउण्डेशन उद्योग जगत एवं उदार व्यिक्तियों से प्राप्त अंशदान पर आधारित है तथा प्रतिष्ठित एवं स्वातंत्र न्यासी मण्डल द्वारा इसका प्रबन्धन किया जाता है । एनसीएल अनुसंधान फाउण्डेशन प्रयोगशाला में किसी भी कर्मचारी एवं ग्रूप द्वारा अनुसंधान के किसी भी क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट कार्य का सम्मान करता है । पिछले कई वर्षों में एनसीएल अनुसंधान फाउण्डेशन की क्षमता में वृद्धि हुई है । यह फाउण्डेशन सुप्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के व्याख्यान, छात्रों की विदेश यात्रा हेतु अनुदान तथा एनसीएल स्टाफ के आर्थिक रूप से जरूरतमंद बच्चों को शोधवृत्ति जैसी कई गतिविधियों में भी सहायता प्रदान करता है ।
  • डॉ. पॉल रत्नासमी, प्रमुख, अकार्बनिक रसायन विज्ञान एवं उत्प्रेरण प्रभाग ने एनसीएल के सातवें निदेशक के रूप में कार्यभार सम्भाला (1995-2002)
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