इतिहास और मील के पत्थर

1950-1959

  • प्रोफेसर जे. डब्ल्यू मैकबेन, एफआरएस, प्रोफेसर, रसायनविज्ञान, स्‍टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, संयुक्‍त राज्‍य अमरीका ने एनसीएल के प्रथम निदेशक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया 1949-52 ।

m c bain‘‘अत: राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला को भारतीय प्राकृतिक स्रोतों के लाभ हेतु ही केवल वर्तमान ज्ञान का प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि इसे शुद्ध मौलिक विज्ञान के विकास हेतु अपना योगदान देना चाहिए । भारत को अन्य स्थानों पर विकसित ज्ञान का ही केवल अनुकरण और अंगीकार नहीं करना चाहिए अपितु इसे संसार के देशों में अपना उपयुक्त स्थान बनाने के लिए अपने स्तर पर मौलिक विकास और प्रगति करना चाहिए।

आपने और हमने इस दिवस को राष्ट्रीय प्रयोगशाला और इसके स्टाफ को इस आश्वासन के साथ समर्पित किया है कि इसका कार्य निरन्तर आगे बढ़ता रहेगा और यह प्रयोगशाला इस देश और विश्व की सेवा करते हुए भविष्य में अपनी प्रगति-यात्रा जारी रखेगी ।

इन्हीं महान उम्मीदों के साथ हमने भारत की राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला को समर्पित किया है ।’’

प्रो. जे. डब्यू . मैकबेन, एफ.आर.एस. 3 जनवरी, 1950
  • 3 जनवरी 1950 को प्रयोगशाला औपचारिक रूप से अस्तित्व में आ गई एवं इसी दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे राष्‍ट्र को समर्पित किया। इसके उध्घाटन समारोह में विश्‍व के नोबल पुरस्‍कार विजेता वैज्ञानिक एवं कई सुप्रतिष्‍ठित व्‍यक्ति उपस्थित थे ।
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कार्यक्षेत्र एवं उद्देश्य (सर शान्ति स्वरूप भटनागर के अभिभाषण से)

  • इस प्रयोगशाला का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य वैज्ञानिक अनुसंधान और इसके औद्योगिक अनुप्रयोग के बीच खाई को पाटना होगा ।
  • यह जनकल्‍याण की व्‍यावहारिक समस्‍याओं के समाधान हेतु वैज्ञानिक ज्ञान के प्रयोग की दिशा में उपाय खोजेगी ।
  • एन.सी.एल. का उत्‍थान या पतन उसके वैज्ञानिक स्‍टाफ की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा । इसे राष्‍ट्रीय और अन्‍तत: अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
  • प्रयोगशाला नए वैज्ञानिक ज्ञान के सन्‍दर्भ में पुरानी प्रक्रियाओं में सुधार लाएगी और नई प्रक्रियाओं की खोज करेगी ।
  • संक्षेप में राष्‍ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला विश्वविद्यालयों, वैज्ञानिक संस्थानों तथा उद्योग जगत के साथ सक्रिय एवं महत्त्वपूर्ण सम्पर्क-सूत्र के रूप में कार्य करेगी ।
  • प्रयोगशाला का दूसरा प्रमुख उद्देश्‍य मौलिक अनुसंधान सम्‍पादित करना होगा जिससे कि ज्ञान के क्षेत्रों का विस्‍तार हो सके । मौलिक अनुसंधान से अनुसंधानकर्ताओं को सदैव प्रेरणा मिलती रही है । मौलिक अनुसंधान से ऐसे अनुसंधानकर्ताओं को प्रोत्‍साहित और आकर्षित किया है जिन्‍होंने आदर्शों के लिए कार्य किया है और जिनका आदर्श वाक्‍य है, ‘‘स्‍वर्ण की अपेक्षा ज्ञानार्जन श्रेष्‍ठ है’’

 

nehru 3 ‘‘ हमारे देश में प्रतिभा है । लेकिन प्रश्न यह है कि उस प्रतिभा को किस प्रकार काम में लाया जाए और भारत के उन युवा पुरुषों और महिलाओं को,जिनमें अपेक्षित योग्यता है, किस प्रकार अवसर प्रदान किए जाऍं । मुझे विश्वास है कि इस तरह की प्रयोगशालाऍं बड़ी संख्या में युवकों और युवतियों के लिए कम से कम द्वार खोलने की दिशा में कुछ हद तक सहायक होगीं और विज्ञान के लिए तथा जनकल्याण हेतु विज्ञान के प्रयोग में देश के लिए अच्छा कार्य करने के लिए उन्हें अवसर उपलब्ध कराएगी । इन शब्दों के साथ मैं इस प्रयोगशाला के शुभारंभ की घोषणा करता हूँ ।’’

पं. जवाहरलाल नेहरू, 3 जनवरी, 1950

 

 

c v ramanमैं राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला में होने वाले वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रयोगात्मक मूल्य पर बल देना चाहूँगा । यद्यपि मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता हूँ कि वैज्ञानिक कार्य का मुख्य प्रोत्साहन उसकी उपयोगिता है । मनुष्य का यह प्रयास होना चाहिए कि वह प्रकृति का अध्ययन करे और उसके रहस्यों को समझे । विज्ञान का यही सर्वोत्तम उद्देश्य है । इसी कारण से मैं समझता हूँ कि केवल अच्छी प्रयोगशालाऍं ही वैज्ञानिक कार्यों को सम्पादित करने के लिए पर्याप्त या समर्थ नहीं हैं अपितु प्रयोगशाला में कार्य करने वाले व्यक्ति की योग्यता ही इस कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण मानी गई है । मुझे विश्वास है कि असाधारण योग्यता से सम्पन्न व्यक्ति राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला में कार्य करेंगे और उनका वह कार्य विज्ञान की प्रगति, उन्नति और विकास के लिए होगा ।

सर सी.वी. रामन, नोबेल पुरस्कार विजेता, 3 जनवरी, 1950
  • प्रोफेसर मैकबेन ने प्रयोगशाला का जो लक्ष्य बताया था उसे मुख्य भवन के विशाल प्रवेश-कक्ष में प्रतिष्ठापित किया गया है जो इस प्रकार है – ‘‘इस प्रयोगशाला का उद्देश्य ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना एवं मानव कल्याण हेतु रसायनविज्ञान को प्रयोग में लाना है ।’’
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‘‘पूना से 4 मील दूर पहाड़ियों की प्राकृतिक छटा में स्थिति पश्चिमी शैली में निर्मित इमारत एक शानदार और आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है । यह रसायन विज्ञान के शुद्ध और अनुप्रयुक्त दोनों क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु पूर्ण रूप से सुसज्जित है । इसकी स्थापना से वैज्ञानिक अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन के मध्य प्रभावी सहयोग की संभावना है । यह सहयोग एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लिए परमावश्यन है ।’’
नेचर पत्रिका, 165 174, 1950
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  • एनसीएल में विभिन्न वैज्ञानिक विधाओं के अलग-अलग प्रभाग बनाए गए जैसे, - भौतिक रसायनविज्ञान, अकार्बनिक रसायनविज्ञान, कार्बनिक रसायनविज्ञान, जीवरसायनविज्ञान, प्लास्टिक एवं उच्च बहुलक, रासायनिक अभियांत्रिकी एवं सर्वेक्षण तथा सूचना प्रभाग ।
  • प्रोफेसर जॉर्ज आई. फिंच, एफआरएस, प्रोफेसर, अनुप्रयुक्त भौतिक रसायनविज्ञान, इम्पीरियल कॉलेज, लन्दन,ब्रिटेन ने एनसीएल के दूसरे निदेशक के पद का कार्यभार सम्भाला(1952-57)
 
  • एनसीएल ने स्वाधीन भारत में उभरते हुए रसायन उद्योग के साथ गहरे सम्बन्ध स्थापित किए । एनसीएल ने 65 से अधिक उद्योगों को अपनी सेवाऍं प्रदान कीं। इस अवधि में एनसीएल ने 46 भारतीय एकस्व (पेटेण्टं) प्राप्त किए ।
  • एनसीएल ने भारत में बहुत ही कम समय में रसायन विज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख अनुसंधान केन्द्र के रूप में अपनी साख बनायी । इस दशक में एनसीएल के वैज्ञानिकों के 350 शोधपत्र प्रकाशित हुए और 22 शोधछात्रों को पीएच.डी की उपाधि प्रदान की गई ।
  • nehru visit 1953 भारत के प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1953 में पुन: एनसीएल का दौरा किया । इस बार उनके साथ उनकी पुत्री सुश्री इन्दिरा गॉंधी एवं पौत्र श्री राजीव गॉंधी भी आए थे ।
 
  • रासायनिक प्रौद्यौगिकी विभाग, बम्बई विश्वविद्यालय (वर्तमान में रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान) के प्रोफेसर के. वेंकटरामन, सुप्रतिष्ठित वैज्ञानिक जिनका रसायनविज्ञान एवं संश्लेषित रंजक रसायनविज्ञान के क्षेत्र में प्रारंभिक योगदान था, ने एनसीएल के तीसरे निदेशक के रूप में कार्यभार सम्भाला (1957-66)
  • प्रो. के. वेंकटरामन ने एनसीएल को कार्बनिक रसायनविज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख अनुसंधान केन्द्र के रूप में प्रस्थापित किया । इसमें संश्लेषित रंजकों, औषधियों, सुगन्धित रसायनों, फ्लैवोनॉइड,टर्पेनॉइड एवं काष्टि फीनॉलिक के अनुसंधान पर अधिक बल दिया गया ।